Tuesday, November 12, 2019
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Wednesday, December 13, 2017
बिहार का विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला.....जहां मिलता है हाथी से लेकर सूई तक...
यह मेला भले ही पशु मेला के नाम से विख्यात है, लेकिन इस मेले की खासियत यह है कि यहां सूई से लेकर हाथी तक की खरीदारी आप कर सकते हैं ।
इससे भी बड़ी बात यह कि मॉल कल्चर के इस दौर में बदलते वक्त के साथ इस मेले के स्वरूप और रंग-ढंग में बदलाव जरूर आया है लेकिन इसकी सार्थकता आज भी बनी हुई है ।
5-6 किलोमीटर के वृहद क्षेत्रफल में फैला यह मेला हरिहर-क्षेत्र मेला और छत्तर-मेला मेला के नाम से भी जाना जाता है।
हर साल कार्तिक पूर्णिमा के स्नान के साथ यह मेला शुरू हो जाता है और एक महीने तक चलता है।
इस स्थान के बारे में कई धर्मशास्त्रों में चर्चा की गई है।
हिंदू धर्म के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां स्नान करने से सौ गोदान का फल प्राप्त होता है।
पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु के दो भक्त जय और विजय शापित होकर हाथी (गज) और मगरमच्छ (ग्राह) के रूप में धरती पर उत्पन्न हुए थे।
एक दिन कोनहारा के तट पर जब गज पानी पीने आया था तो ग्राह ने उसे पकड़ लिया था।
फिर गज ग्राह से छुटकारा पाने के लिए कई सालों तक लड़ता रहा। तब गज ने बड़े ही मार्मिक भाव से अपने हरि यानी विष्णु को याद किया।
तब कार्तिक पूर्णिमा के दिन विष्णु भगवान ने उपस्थित होकर सुदर्शन चक्र चलाकर उसे ग्राह से मुक्त किया और गज की जान बचाई।
इस मौके पर सारे देवताओं ने यहां उपस्थित होकर जयजयकार की थी।
लेकिन आज तक यह साफ नहीं हो पाया कि गज और ग्राह में कौन विजयी हुआ और कौन हारा।
कहा तो यह भी जाता है कि कभी भगवान राम भी यहां पधारे थे और बाबा हरिहरनाथ की पूजा-अर्चना की थी।
सोनपुर की इस धरती पर हरिहरनाथ मंदिर दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर है जहां हरि (विष्णु) और हर (शिव) की एकीकृत मूर्ति है।
इसके मंदिर के बारे में कहा जाता है कि कभी ब्रह्मा ने इसकी स्थापना की थी।
इसके साथ ही संगम किनारे स्थित दक्षिणेश्वर काली की मूर्ति में शुंग काल का स्तंभ है।
कुछ मूर्तियां तो गुप्त और पाल काल की भी हैं।
इसी तरह सिख ग्रंथों में यह जिक्र है कि गुरु नानक यहां आए थे। बौद्ध धर्म के अनुसार अंतिम समय में भगवान बुद्ध इसी रास्ते कुशीनगर गए थे। जहां उनका महापरिनिर्वाण हुआ था। ऐसे और भी न जाने कितने इतिहास यह अपने आप में समेटे हुए है।
यहां मेले से जुड़े तमाम आयोजन होते हैं।
इस मेले में कभी अफगान, इरान, इराक जैसे देशों के लोग पशुओं की खरीदारी करने आया करते थे।
कहा जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य ने भी इसी मेले से बैल, घोड़े, हाथी और हथियारों की खरीदारी की थी।
1857 की लड़ाई के लिए बाबू वीर कुंवर सिंह ने भी यहीं से अरबी घोड़े, हाथी और हथियारों का संग्रह किया था।
अब भी यह मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला है। देश-विदेश के लोग अब भी इसके आकर्षण से बच नहीं पाते हैं और यहां खिंचे चले आते हैं।
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